अंतरराष्ट्रीय व्यापार अंतर्देशीय व्यापार की एक विशिष्ट दशा है विवेचना कीजिए ?
international market व्यापार शब्द बहुत व्यापक है या केवल माननीय क्रिया की और संकेत नहीं करता है और ना ही उसमें किसी एक क्रिया को सम्मिलित किया जाता है वरन व्यापार में वस्तु के उत्पादन से वितरण तक फैली समस्त क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है किसी भी राष्ट्र के व्यापार को दो भागों में बांटा जा सकता है !
1. आंतरिक व्यापार- जब किसी देश की सीमाओं के भीतर विभिन्न स्थानों प्रदेशों तथा छात्राओं के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय विक्रय होता है तो उसे अंतरिक्ष से पर राष्ट्रीय व्यापार घरेलू व्यापार और अंतर क्षेत्रीय व्यापार कहते हैं अधिक स्पष्ट शब्दों में अंतर क्षेत्रीय व्यापार से आशय ऐसे व्यापार से है जो किसी देश की सीमा के भीतर विभिन्न स्थानों या क्षेत्रों के बीच किया जाता है उदाहरण के लिए यदि मध्यप्रदेश का व्यापारी छत्तीसगढ़ के व्यापारी को माल भेज देता है या राजस्थान का व्यापारी उत्तर प्रदेश के व्यापारी कुमार बेचता है अथवा उत्तर देश का व्यापारी पंजाब राजस्थान बिहार एवं छत्तीसगढ़ के व्यापारियों को माल का विक्रय करता है तो इस प्रकार के व्यापार को भारत में व्यापार कहते हैं
2. अंतरराष्ट्रीय व्यापार- जब दो या दो से अधिक राष्ट्रों के मध्य वस्तुओं और सेवाओं का क्रय विक्रय होता है तो इसे विदेशी व्यापार व्यापार व्यापार या अंतरराष्ट्रीय व्यापार करते हैं यह व्यापार अलग-अलग रहा है 2 या 2 देशों के बीच होता है अधिक स्पष्ट शब्दों में यदि किसी राष्ट्र विशेष का व्यापार किसी अन्य राष्ट्र या राष्ट्रों के साथ होता है तो वह अंतरराष्ट्रीय व्यापार कहलाता है जैसे भारत का लोकेशन व्यापार जापान का बास के साथ व्यापार भारत का विकास के साथ व्यापार ब्रिटेन बांग्लादेश सिंगापुर मलेशिया आदि देशों के साथ व्यापार को अंतरराष्ट्रीय व्यापार करते हैं !
आंतरिक एवं अंतरराष्ट्रीय व्यापार में समानता
प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों एडम स्मिथ रिकॉर्डर जे एस मिल आदि ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार एवं आंतरिक व्यापार को अलग-अलग माना था उनका मत था कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार वह व्यापार है जो विभिन्न देशों में रहने वाले व्यक्तियों के मध्य होता है जबकि आंतरिक व्यापार व्यापार है जो एक देश में रहने वाले व्यक्ति के मध्य किया जाता है अंतरराष्ट्रीय व्यापार एक देश की सीमा को पार कर सकता है जबकि आंतरिक व्यापार सीमा को पार नहीं कर पाता किंतु कुछ अर्थशास्त्री अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं अंतर क्षेत्रीय व्यापार में कोई विशेष अंतर नहीं मानते वह हलीम लेबल तथा अनेक अर्थशास्त्रियों के मतानुसार सिद्धांत तथा आंतरिक एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्याओं के मध्य अंतर बताना असंभव है इनके बीच कोई विभाजक रेखा नहीं खींची जा सकती और ना ही इस प्रकार करने पर करना आवश्यक है वह लिंग के शब्दों में घरेलू तथा विदेशी व्यापार में मौलिक अंतर नहीं है इसलिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार के अध्ययन हेतु किसी पृथक सिद्धांत की आवश्यकता नहीं है होली के अगले ने यह स्पष्ट किया है कि जिन कारणों से एक देश के विभिन्न में व्यक्ति या समूह व्यापारिक कार्यों में व्यस्त होते हैं उन्हें कारणों से विभिन्न राष्ट्रीय व्यापारिक कार्यों में संलग्न रहते हैं उनके दृष्टिकोण से अंतरराष्ट्रीय व्यापार अंतर क्षेत्रीय व्यापार का ही एक विशिष्ट रूप है वस्तुतः वाली अंतर क्षेत्रीय अथवा देश के भीतर होने वाले व्यापार तथा अंतरराष्ट्रीय व्यापार के बीच कोई अंतर नहीं मानते उनके अनुसार दोनों ही प्रकार के व्यापार में निम्न पते समान दिखाई देती है !
1. दो पक्षों की अनिवार्यता- किसी प्रकार के क्रय विक्रय के लिए दो पक्षों की अन्याय अनिवार्यता है एक क्रेता और दूसरा विक्रेता बिना दो पक्षों के कोई आदान-प्रदान नहीं हो सकता व्यापार चाहे देसी हो या विदेशी दोनों पक्षों में ही दो पक्षों की आवश्यकता होती है !
2. दोनों पक्षों को लाभ- विनय भाई की किसी भी क्रिया को मूल आधार दो पक्षों का पारस्परिक लाभ है विनिमय क्रिया चाहे किसी देश के सीमित क्षेत्र में हुआ या चाहे दो अथवा अधिक देशों के बीच क्षेत्र में दोनों ही दर्शकों में अधिकतम पर स्वरित लाभ की प्रेरणा आवश्यक है !
3. ऐच्छिक सौदा- देसी और विदेशी दोनों प्रकार के क्रय विक्रय की क्रिया स्वेच्छा से होती है से होती है उसमें जोर-जबर्दस्ती के लिए कोई स्थान नहीं होता कभी-कभी सरकार खुद वस्तुओं को देश के अंतर्गत अथवा दो देशों के बीच क्रय-विक्रय को सीमित नहीं कर सकती है अथवा उस पर प्रतिबंध लगा सकती है किंतु तू भी कोई सरकार किसी व्यक्ति को कोई वस्तु क्रय करने अथवा बेचने के लिए बाध्य नहीं कर सकता !
4. विशिष्ट करण करण एवं श्रम विभाजन- आंतरिक एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही प्रकार के व्यापार का प्रमुख आधार श्रम विभाजन एवं विशिष्ट करण है व्यक्ति की भांति कोई भी देश उस वस्तु अथवा वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टता प्राप्त करने का प्रयत्न करेगा जिनमें उसे अपेक्षाकृत अधिक लाभ है यदि श्रम विभाजन एवं विशिष्ट करण की यह प्रक्रिया देश की सीमा के भीतर ही सीमित रह जाए तो या आंतरिक व्यापार को जन्म देगी यह विभिन्न देशों में तुलनात्मक लाभ के आधार पर विशिष्ट करण किया जाए तो उसे आंतरिक व्यापार का आरंभ होगा ! international market
5. रुचि अनुकूल उत्पादन- दोनों ही प्रकार के व्यापार में कृत अथवा होता कि रुचि के अनुकूल माल का होना आवश्यक है अन्यथा उसकी मांग की जाएगी !
6. विज्ञापन- दोनों प्रकार के व्यापार में विभाजन की क्रिया भी समान होती है जिसके द्वारा उपभोक्ता कुमार की जानकारी कराई जाती है तथा उसकी उपयोगिता बताई जाती है !
7. माल संचय- क्रय विक्रय किया चाहे देसी हो या विदेशी माल का संचय उसका परिष्करण व वर्गीकरण करके उसे बिक्री योग्य स्वर्ग प्रदान करना आवश्यक है !
8. वितरण- उपभोक्ता तक माल पहुंचाने के लिए वितरण क्रिया भी दोनों में आवश्यक है !
आंतरिक एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अंतर
प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आंतरिक व्यापार में निम्नलिखित अंतर बताएं हैं और इन अंतरों के आधार पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के एक पृथक सिद्धांत का प्रतिपादन आवश्यक बताया है:-
1. श्रम और पूंजी की गतिशीलता में अंतर- एक देश में श्रम और पूंजी की अधिक गतिशीलता होते हैं जबकि अनेक देशों के बीच कम इसकी भाषा जाति पति धर्म रहन-सहन सामाजिक व सांस्कृतिक भेदभाव रीति रिवाज आदि अनेक कारण हो सकते हैं इस गतिशीलता के अभाव से श्रम और पूंजी का हुआ संतुलन विभिन्न देशों के बीच संभव नहीं है जो एक देश के आंतरिक संभव है !
2. प्राकृतिक साधन एवं भौगोलिक स्थिति में अंतर- विभिन्न देशों में विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक साधन तथा भौगोलिक स्थितियां पाई जाती है जिसके परिणाम स्वरूप प्रादेशिक श्रम विभाजन तथा उद्योगों का स्थानीयकरण संभव होता है यदि कुछ देशों को खनिज पदार्थों में लाभ प्राप्त होते हैं तो अन्य देशों को उपयुक्त जलवायु और उर्वरा भूमि के इन लाभों का एक देश से दूसरे देश को स्थानांतरण या तो असंभव होता है या अधिक खर्चीला जबकि देश के आंतरिक भागों में इसके हस्तांतरण की कोई समस्या नहीं आती है अतः इन लोगों के कारण भी दो देशों के बीच किसी वस्तु के उत्पादन में में अंतर हो जाता है ! international market
3. उत्पादन की दशाओं में भिन्नता- प्रत्येक देश अपनी सभी देशों में उत्पादन संबंधी सुविधाएं अलग-अलग होती है क्योंकि विभिन्न देशों की कार्यप्रणाली औद्योगिक व्यवस्था शिक्षा सुविधाएं सामाजिक सुरक्षा का प्रबंधन श्रम संघ तथा औद्योगिक गुटबंदी नियम अलग-अलग होते हैं जिसके कारण उनके उत्पादन लागत में अंतर आ जाता है !
4. राष्ट्रीय नीतियों में भिन्नता- प्रत्येक देश अपनी आर्थिक सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों के आधार पर नीतियों का निर्धारण करता है यही कारण है कि विभिन्न देशों की कर नीति औद्योगिक नीति मौद्रिक नीति राजकोषीय नीति कारखानों एवं श्रमिक संघ से संबंधित नियमों में काफी अंतर होता है इसके विपरीत एक देश के अंदर यह नीतियां एक जैसी होती है अतः विभिन्न देशों की नीतियों एवं नियमों की भिन्नता के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार एवं अंतर क्षेत्रीय व्यापार की शर्तों में काफी अंतर आ जाता है
5. वस्तुओं के आयात निर्यात में बाधा- आंतरिक व्यापार में स्वतंत्र प्रतियोगिता रहती है अन्य शब्दों में एक देश के भीतर व्यापारिक स्वतंत्रता पूर्वक किया जाता है तथा वस्तु के आवागमन या आयात निर्यात पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं होता इसके विपरित विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं के आयात निर्यात पर प्रतिबंध तथा शुल्क लगाए जाते हैं जिसके कारण विदेशी व्यापार की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है फल स्वरुप वस्तुओं के मूल्यों में भिन्नता पाई जाती है !
6. मौद्रिक प्रणाली में भिन्नता- एक देश के भीतर एक ही प्रकार की मुद्रा चलन में होती है अतः आंतरिक व्यापार में भुगतान संबंधी कठिनाइयों उत्पन्न नहीं होती है दूसरे देशों में विभिन्न प्रकार की मुद्राओं का चलन होता है इसलिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विदेशी विनिमय संबंधी अनेक कठिनाइयां उत्पन्न न हो जाती है इसके अतिरिक्त विभिन्न देशों की मौद्रिक नीतियों में परिवर्तन के कारण उनकी कीमत स्तर में भी परिवर्तन हो जाते हैं फलता अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन मिलता है ! international market
7. प्रतिस्पर्धा में अंतर- आंतरिक व्यापार में वस्तुओं एवं साधनों के बाजारों में मूल्यों का निर्धारण पूर्ण प्रतियोगिता के आधार पर होता है यदि किसी भी बाजार में विक्रेताओं के मध्य गठबंधन हो जाए तो उत्पादन न्यूनतम लागत पर नहीं हो सकेगा और मूल्य में भी अधिक होगा साधनों का अनुकूलतम उपयोग एवं वितरण उस स्थिति में संभव है जब देश में मुक्त बाजार व्यवस्था हो इसके विपरीत अंतरराष्ट्रीय व्यापार में केवल साधनों की गतिशीलता में ही औरत नहीं होता वरन वस्तुओं के बाजार राशि पतन तथा संरक्षण की नीतियों के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार कर विकृत हो जाता है !
8. परिवहन व्यय में भिन्नता- एक ही देश के आंतरिक व्यापार में प्रायः एक स्थान से दूसरे स्थान पर माल भेजने के लिए साधन सुलभता से प्राप्त हो जाते हैं तथा परिवहन व्यय काम हो जाता है इसके विपरीत विदेशों को माल भेजने में परिवर्तन के साधन सरलता से उपलब्ध नहीं होते और उनके व्यय में भी वस्तु का मूल्य भी नहीं रहता है परिवहन व्यय में भी अंतर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को आंतरिक व्यापार से मिलने रखता है !international market
9. राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग की समस्या- अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मौद्रिक सहयोग की कोई आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि एक समान मुद्रा प्रणाली होने से किसी प्रकार की मौद्रिक समस्याएं उत्पन्न नहीं होती है परंतु अंतरराष्ट्रीय व्यापार में यह आवश्यक है कि विभिन्न देशों की मौद्रिक व्यवहार में समानता हो !
10. अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विशिष्ट समस्याएं- कुछ ऐसी भी होती है जो घर में नहीं पाई जाती परंतु अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पाई जाती है जैसे अंतरराष्ट्रीय तरलता की समस्या पणजी के आवागमन तथा भुगतान संतुलन की समस्या तथा परिवहन समस्या आदि !international market
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