chairperson of the central board direct taxes
"chairperson of the central board of direct taxes" प्रत्यक्ष एवं परोक्ष करों के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।
[प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के अंतःक्षेप और अवगुणों की व्याख्या करें] chairperson of the central board of direct taxes
अथवा
प्रत्यक्ष कर तथा परो। क्ष करों में अन्तर कीजिए। प्रत्यक्ष करो के गुणों एवं दोषों को बताइए।
[प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के बीच अंतर बताएं। Direct Taxes.l के गुण एवं दोष बताइये
अथवा
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की परिभाषा दीजिए। उनके गुण एवं दोषों का उल्लेख कीजिए। (Define Direct an id Indirect Taxes. Point out their merits and demerits.)
अथवा
"न्यायपूर्ण एवं पर्याप्त कर प्रणाली के लिए प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों प्रकार के करों की आवश्यकता है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
"न्यायसंगत और पर्याप्त कर प्रणाली के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों करों की आवश्यकता है। टिप्पणी]
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Direct Taxes)
प्रत्यक्ष कर वे कर है जो पूर्णतः उसी व्यक्ति द्वारा चुकाये जाते हैं जिन पर यह लगाया जाता है। अन्य शब्दों में, जब किसी कर का कराधान एवं करापात अन्तिम रूप से एक ही व्यक्ति पर पड़ता है तो उसे प्रत्यक्ष कर कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि जिस व्यक्ति पर यह कर लगाया जाता है वही व्यक्ति इसका भार वहन करता है। ऐसे करों को किसी अन्य व्यक्ति को विवर्तित नहीं किया जा सकता है। आयकर तथा सम्पत्ति कर अच्छे उदाहरण है। इसकी कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार दी गयी है-
(1) डाल्टन के अनुसार, 'प्रत्यक्ष कर वह कर है जिसका भुगतान वास्तव में उसी व्यक्ति के द्वारा किया जाता है जिस पर यह कानूनी तौर से लगाया जाता है।"
(2) प्रो. जे. एस मिल के शब्दों में, "प्रत्यक्ष कर वह है जो उसी व्यक्ति से माँगा जाता है जिससे कि यह आशा या इच्छा प्रकट की जाती है कि वह अपने पास से देगा
(3) प्रो. जे. के. मेहता के अनुसार, "प्रत्यक्ष कर वह है जो कि पूर्णतया उर्स। व्यक्ति द्वारा चुकाया जाता है जिस पर कि वह लगाया गया हो।"
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि प्रत्यक्ष कर का भुगतान उसी व्य कित द्वारा किया जाता है जिस पर यह लगाया जाता है। अन्य शब्दों में प्रत्यक्ष कर का विवर्तन सम्भव नहीं होता है। संक्षेप में प्रत्यक्ष कर वह होता है जिसका भुगतान करने का दायित्व एवं कर का भार दो नों प्रत्यक्ष रूप से एक ही व्यक्ति पर पड़ता है।
प्रत्यक्ष कर के गुण
(प्रत्यक्ष करों के लाभ)
प्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं-
(1) न्यायशीलता-प्रत्यक्ष कर अधिक न्यायशील होते हैं क्योंकि यह एक निश्चित आय प्राप्त करने वाले व्यक्तियों पर लगाया जाता है। जो व्यक्ति अधिक आय प्राप्त करता है वह अधिक कर देता है तथा जिसकी आय कम होती है वह कम कर का भुगतान करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि प्रत्यक्ष कर योग्यता के अनुसार लगाया जाता है। अतएव प्रत्यक्ष कर मैं न्यायर्शीलता या समानता या योग्यता का गुण पाया जाता है।
(2) निश्चितता-प्रत्यक्ष कर में निश्चितता का गुण होता है। इसमें करदाताओं को पहले से ही पता रहता है कि उन्हें कर की कितनी राशि किस समय तथा किस तरीके से भुगतान करना है। साथ-ही-साथ सरकार को भी इस बात की जानकारी होती है कि इन करें है। उसे कितनी आय प्राप्त होने वाली है। इस प्रकार प्रत्यक्ष कर से करदाताओं तथा राज्य दोनों को ही लाभ होता है तथा दोनों निश्चित होते हैं।
(3) मितव्ययिता-प्रत्यक्ष कर मितव्ययी भी होते हैं क्योंकि यह क र सभी व्यक्तियों पर नहीं लगाये जाते हैं। यह उन्हीं व्यक्तियों पर लगाये जाते हैं जो भुगतान कर ने के योग्य होते हैं। अन्य शब्दों में, यह कर अधिक आय प्राप्त करने वाले व्यक्तियों पर लगाये जाते हैं। अधिकांश कर की राशि स्रोत पर ही प्राप्त हो जाती है। अतएव प्रत्यक्ष कर में मितव्ययिता होती है। इन करों से प्राप्त होने वाली आय का अधिकांश भाग खजाने में ही आता है।
(4) लोबदार-इस प्रकार की कर प्रणाली में लोच का भी गुण पाया जाता है। सरकार इन करें में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सकती है। युद्ध तथा आर्थिक संकट के समय इससे अधिक आय प्राप्त की जा सकती है। इससे सरकार की आय में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार आय में कमी होने पर कर में कमी हो जाती है।
(5) उत्पादकता-प्रत्यक्ष कर उत्पादकता के सिद्धान्त की भी सन्तुष्टि करते हैं। इनसे पर्याप्त मात्रा में आय होने के साथ वे उत्पादन को प्रोत्साहित करते हैं। देश के आर्थिक विकास को इन करों से बढ़ावा मिलता है तथा व्यापार व सरकार की आय में वृद्धि होती जाती है अतएव प्रत्यक्ष कर में उत्पादकक्षा का गुण पाया जाता है।
(6) असमानताओं में कमी- प्रत्यक्ष कर आय की असमानताओं में कमी करते हैं क्योंकि ये आरोही प्रवृत्ति के होते हैं अर्थात अमीरों से भारी कर लिए जाते हैं जबकि गरीबों से तथा आयकर के दायरे से कम आय वाले लोगों को यह कर नहीं चुकाने पड़ते हैं।
(7) नागरिक घेतना-प्रत्यक्ष कर शिक्षाप्रद भी होते हैं। इसके अन्तर्गत प्रत्येक करदाता को पहले से ही पता रहता है कि इसे कर के रूप में सरकार को कितनी राशि देना है। इससे लोगों में नागरिक चेतना का विकास होता है। यदि लोगों के द्वारा दी गयी कर राशि का सरकार दुरुपयोग करती है तो उसके विरुद्ध आवाज उत्खयी जाती है। उसके विरुद्ध जनमत तैयार किया जाता है। इस प्रकार करदाताओं में नागरिक चेतना का विकास होता है।
प्रत्यक्ष कर के दोष
(प्रत्यक्ष करों के दोष)
प्रत्यक्ष कर प्रणाली में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं-
(1) असुविधाजनक प्रत्यक्ष कर प्रणाली असुविधाजनक होती है, क्योंकि इसमें करदाता को आय थोड़ी-थोड़ी करके प्राप्त होती है, परन्तु उन्हें कर को एक मुख्य भुगतान करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त करदाता को अपनी आय का लेखा-जोखा रखना पड़ता है। इससे भी करदाता को पर्याप्त असुविधा का सामना करना पड़ता है। इससे कई प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं तथा कभी-कभी भुगतान के समय भी असुविधाजनक होता है।
(2) विशेष-प्रत्यक्ष करों का प्रभाव कराधान एवं करापात दोनों ही व्यक्ति पर पड़ता हे। इससे सुगतान करने वाले व्यक्ति की कार्यक्षमता में कमी आ जाती है। इसीलिए करदाताओं द्वारा प्रायः इन करों के प्रति आवाज उठाई जाती है। साथ ही इस व्यवस्था में करों में वृद्धि की जानकारी करदाताओं को तत्काल हो जाती है। इस कारण भी इसका तीव्र विरोध होता है।
(3) कर की मनमानी दर-इस प्रकार की कर व्यवस्था का एक बड़ा दोष यह भी है कि कर की दरों का निर्धारण पूर्णतः कर अधिकारी की इच्छा पर निर्भर होता है। कभी-कभी कर अधिकारी इतनी अधिक दर निश्चित कर देते हैं कि एक ईमानदार को हानि होने वाली लगती है तथा उसके व्यवसाय पर बुरा प्रभाव पड़ने लगता है। इसमें भ्रष्टाचार फैलने का भय रहता है, क्योंकि कर अधिकारी अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने लगते हैं। इससे उत्पादन तथा आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(4) करवचन की सम्भावना- इस प्रणाली में कर का भार प्रत्यक्ष रूप से केवल करदाताओं पर पड़ता है। इसलिए वे सदैव इससे बचने का प्रयास करते रहते हैं। ऐसे करों में चोरी किए जाने की सम्भावना बहुत अधिक होती है। करदाताओं द्वारा झूठे तया गलत हिसाब-किताब प्रदर्शित करके एक चालाक व्यक्ति करों के भुगतान से बच सकता है। साथ ही साथ इसके लिए करदाताओं को अनेक गलत तथा अनैतिक कार्य करने पड़ते हैं।
(5) सीमति क्षेत्र प्रत्यक्ष कर कुछ ही व्यक्तियों पर जिसकी आय अधिक होती है, लगाये जाते हैं। इससे समाज का एक बड़ा भाग अर्थात् निर्धन वर्ग इसके भार से मुक्त रहता है। अतः इन करों का भार केवल बोड़े से व्यक्तियों पर पड़ता है। यही कारण है कि प्रत्यक्ष कर का क्षेत्र अत्यन्त सीमित होता है। यह सम्पूर्ण समाज को प्रभावित नहीं करता है।
(6) बचत एवं विनियोग को निरुत्साहन प्रत्यक्ष कर बचत तथा विनियोग की प्रवृत्ति पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। लोग जानते हैं कि आय में वृद्धि के साथ-साथ अधिक करों का भुगतान करना पड़ेगा तो वे और बचत तथा विनियोग करने में झिझकते हैं। इससे कार्य करने, बचत तथा चिनियोग की इच्छा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
(7) उत्पादन पर कुप्रभाव-प्रत्यक्ष कर उन उद्योगों तथा प्रतिष्ठानों के उत्पादन को निरुत्साहित करते हैं जिनके द्वारा आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन किया जा रहा है। जब उत्पादक को अपनी आय में से कर की मात्रा का भुगतान करना पड़ता है तो वह अधिक उत्पादन करने का प्रयत्न नहीं करता है, क्योंकि वह जानता है कि उत्पादन वृद्धि पर कर की मात्रा भी बढ़ जायेगी और उसे कोई लाभ नहीं होगा।
अप्रत्यक्ष या परोक्ष कर का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Indirect Taxes)
परोक्ष कर वे कर होते हैं जिसका भुगतान दूसरे व्यक्तियों पर विवर्तन किया जा सकता है। इस प्रकार के कर का करापात किसी एक व्यक्त्ति पर होता है, जबकि कर या भार अन्तिम रूप से किसी दूसरे व्यक्ति पर पड़ता है। प्रो. डाल्टन के अनुसार, "परोक्ष कर किसी एक व्यक्ति पर लगाये जाते हैं, इसका भुगतान पूर्णतः या अंशतः दूसरे व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। सामान्यतः वस्तुओं पर लगाये गये कर परोक्ष कर होते हैं।" उदाहरणार्थ विक्रय कर इसका एक अच्छा उदाहरण है। इस कर का भुगतान करने वाला वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि के द्वारा उपभोक्ता से कर की राशि वसूल कर लेता है। अतः ये कर उपभोक्ता द्वारा चुकाये जाते हैं।
प्रो. जे. एस. मिल के अनुसार, "परोक्ष कर वह है जो किसी से इस इच्छा या आशय से माँगा जाता है कि वह किसी दूसरे से इस कार्य को पूरा कर लेगा।" प्रो. जे. के. मेहता के अनुसार, "परोक्ष कर वह है जिसे चुकाने वाला व्यक्ति उसे पूर्णतया या आंशिक रूप से कुछ अन्य व्यक्तियों पर डाल देता है।"
उपर्युक्त सभी परिभाषाओं के अध्ययन करने से पता चलता है कि परोक्ष करों से दो व्यक्ति प्रभावित होते हैं। एक वह व्यक्ति जो कर चुकाता है तथा दूसरा वह जो उसका भार वहन करता है। इसको एक और उदाहरण द्वारा और अधिक स्पष्ट किया जा सकता है। उदाहरण के लिए बिक्री कर का भुगतान विक्रेता सरकार को करता है। परन्तु विक्रेता वस्तु की कीमत में इस प्रकार की राशि को जोड़ देता है तथा वह शनैः शनैः उपभोक्ताओं से वसूल करता है। इसलिए कहा जाता है कि प्रत्यक्ष कर वह है जो विकसित किया जा सके।
अप्रत्यक्ष या परोक्ष कर के गुण
(अप्रत्यक्ष करों के लाभ)
परोक्ष कर में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं-
(i) सुविधाजनक करदाता इन करों का भुगतान छोटी-छोटी किस्तों द्वारा भिन्न-भिन्न समयों में करता है। इसलिए ऐसे करों का भार करदाता को अनुभव नहीं होता है। चूँकि वह कर भुगतान कर रहा है। साथ ही उपभोक्ता को पूरी-पूरी स्वतन्त्रता होती है कि वह अधिक मूल्य वाली वस्तुएँ खरीदे अथवा नहीं। इस प्रकार उन उपभोक्ताओं को ही कर चुकाना पड़ता है जो कर लगाई गई वस्तुओं को खरीदते हैं। इस प्रकार यह सुविधाजनक होता है।
(ii) करवचन कविन-परोक्ष करों की चोरी नहीं की जा सकती है, क्योंकि यह कर वस्तुओं के मूल्य में सम्मिलित होता है। परोक्ष कर की यह विशेषता है कि इसे उपभोक्ताओं पर विवर्तित किया जाता है अतएव उत्पादकों या विक्रेताओं द्वारा इसकी चोरी का प्रयास नहीं किया जाता। इसलिए कहा जाता है कि जब व्यक्ति वस्तुओं को खरीदता है तो उसे कर के रूप में कुछ-न-कुछ राशि अवश्य देनी पड़ती है। अतएव परोक्ष कर से बच पाना कठिन होता है।
(iii) लोच-यदि कर अनिवार्यताओं पर लगाया जाता है तो यह अत्यन्त लोचदार हो जाता है, क्योंकि इन वस्तुओं को कर की दर में थोड़ी-सी वृद्धि करने पर अधिक आय प्राप्त की जा सकती है।
इसके अतिरिक्त प्राप्त आय जनसंख्या तथा उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ बढ़ती जाती है। इसीलिए कहा जाता है कि परोक्ष करों में प्रायः सामान्य लोच पाई जाती है, परन्तु यह स्थिति आरामदायक तथा विलासिता सम्बन्धी वस्तुओं के सम्बन्ध में लागू नहीं होती है।
(iv) प्रत्येक से वसूल होना-राज्य या सरकार की सहायता प्रत्येक नागरिक को करनी चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह कर एक अच्छा साधन है क्योंकि वस्तुओं को धनी तथा निर्धन सभी व्यक्ति खरीदते हैं जिन पर उनको कर देना पड़ता है। इस प्रकार समाज का प्रत्येक व्यक्ति कुछ-न-कुछ राशि के रूप में देता है अतएव परोक्ष करों के माध्यम के द्वारा प्रत्येक नागरिक राष्ट्र के निर्माण में यथाशक्ति सहयोग देता है।
(v) सामाजिक लाम-परोक्ष करों का उपयोग समाज में सुधार लाने के लिए भी किया जाता है। उदाहरणार्थ-मादक द्रव्यों, शराब, अफीम, गांजा आदि पर जब सरकार अधिक कर लगा देती है तो इनका मूल्य बढ़ जाने के कारण उपभोग कम होने लगता है। इस प्रकार समाज अपनी आय का अधिकांश भाग अधिक लाभप्रद उपभोग की वस्तुओं पर व्यय करता है। अतएव यह कहना गलत न होगा कि परोक्ष कर सामाजिक कल्याण की प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन है।
अप्रत्यक्ष या परोक्ष कर के दोष
(अप्रत्यक्ष करों के दोष)
परोक्ष कर प्रणाली में निम्नलिखित दोष पाये जाते हैं-
(1) न्यायशीलता का अभाव चूंकि यह कर उपभोग की वस्तुओं पर लगाया जाता है इसलिए इसका भार समाज के निर्धन वर्ग पर अधिक पड़ता है। व्यवहार में यह कर व्यवस्वा प्रतिगामी होती है जिसे व्यायसंगत नहीं माना जा सकता है।
(2) अनिश्चितता-अनिवार्य बस्तुओं को छोड़कर अन्य आरामदायक तथा विलासिता की वस्तुओं से प्राप्त होने वाली आय प्राय अनिश्चित होती है। इन वस्तुओं पर लगे करों की दर में वृद्धि होने से उनकी माँग कम हो जाती है जिससे सरकार की आय में कमी आ जाती है। साथ-ही-साथ इस व्यवस्था में कर की मात्रा तया कर के वसूल किए जाने का समय भी अनिश्चित होता है।
(3) अमितव्ययिता-परोक्ष करों को खर्चीली कर व्यवस्था कहा जाता है। इन करों की वसूली पर अधिक व्यय करना पड़ता है। इसकी व्यवस्था के लिए बहुत से कर्मचारियों को रखना पड़ता है तथा जगह-जगह ऑफिस की व्यवस्था करनी पड़ती है। इसीलिए कहा जाता है कि परोक्ष करों से सरकारी खजाने में आय कम आती है तथा इसके वसूल करने में अधिक व्यय करना पड़ता है।
(4) बेलोचदार यदि परोक्ष कर केवल विलासिताओं पर लगाये जाएँ तो इनमें लोच का अभाव गुण पाया जाता है। प्रायः विलासिताओं की माँग की लोच समाज के लिए प्रायः अत्यधिक लोचदार होता है। जब भी कर लगाने से इन वस्तुओं का मूल्य बढ़ जाता है तो कुछ लोग इसका उपभोग बन्द कर देते हैं।
(5) उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव-कभी-कभी परोक्ष करों से उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह उपभोग को हतोत्साहित कर वस्तुओं की माँग कम कर देते हैं। इससे उत्पादन घट जाता है तथा देश के आर्थिक विकास में भी शिथिलता आ जाती है। इसलिए कहा जाता है कि परोक्ष करों को इस प्रकार समायोजित किया जाना चाहिए जिससे उत्पादन पर इसका बुरा प्रभाव न पड़े।
(6) नागरिक चेतना का अभाव परोक्ष कर वस्तुओं तथा सेवाओं पर लगाये जाते हैं। इसकी राशि वस्तु के मूल्य में शामिल होती है। जब कोई व्यक्ति वस्तुओं का उपयोग करता है तभी वह कर देता है। परन्तु इस व्यवस्था में कर देते समय करदाता को यह पता नहीं रहता कि वह कर के रूप में कितनी राशि का भुगतान कर रहा है। इस कठिनाई के कारण करदाताओं में नागरिक चेतना उत्पन्न नहीं हो पाती है।
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